जब हम किसी लक्ष्य को पूरा करने की सोचते है तो हमे राह में आने वाली कठिनाइयों का पता नहीं होता | हम राह में आने वाली छोटी -बड़ी कठिनाइयों से घबराकर या तो अपना रास्ता बदल देते है , या अपना लक्ष्य | परन्तु , क्या यह ठीक होता है ? क्या हम सही फैसला कर पाते है ? क्या हमे इन कठिनाइयों से डर कर भाग जाना चाहिए ? क्या हमें अपने सपने को टूटने देना चाहिए ?
इसी तरह के सवाल या इससे भी कही ज्यादा कठिन सवाल मन में उस वक़्त आते है जब हमारा कोई लक्ष्य अधूरा रह जाता है | इसलिए आप किसी लक्ष्य को जब सोचते है तो उस लक्ष्य को गहराई से सोचे बेसिक पता करे जब आपको लगे कि इस लक्ष्य के लिए अब आप हर तरह से तैयार है और इस लक्ष्य पर अपना समय , अपना ज्ञान सब नौछावर कर सकते है | तब एक बेहतर लक्ष्य तैयार होगा और जिसे आप पूरा भी १०० % कर पाओगे | तब आप उन कठिनाइयों को बहुत ही आसानी से पार कर लोगे क्युकि उन कठिनाईओ से बड़ा आपका लक्ष्य है |
क्या खूब स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि -
उठो जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये |
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